बदलो तो जानें
बदलो तो जानें..!! ये कोरोना और उसके लफड़े, ढलती हुई बारिश की तरह हैं.. शुरुआत में ज़्यादा और आखिर में गायब.. !! सो भईया ये भारत है, यहां इतने दिन तो हम कैंसर को भी नहीं भजते जितना इस कोरोना को सह लिया.. हमारी तो आदत में शुमार है, दाएं लिखा है तो बाएं मुड़ने की.. धीमे लिखा हो तो तेज़ चलने की तो भला ये घर में रहना, मस्क पहनना जैसी चीजे हम क्यों सीधे सीधे मानें..? आपके लिए होगा मास्क बीमारी से बचने का उपाय अजि हमारे लिए तो स्टेटस सिंबल है..!! और नहीं तो क्या बाहर निकलो नहीं के सबके पास मास्क.. ऐसा लगता है मैं क्यों पीछे रहूं मैं भी लगाऊंगा फ़ैशन के अनुरूप.. मम्मी बेवजह चिल्लाती हैं.. मुझे भी गले पे ही बांधना है..! क्यों आपको नहीं पता..?? हमारे यहां मास्क गले पर बांधने का रिवाज़ है.. और अब तो हमने कोरोना को मां भी मान लिया है.. तो इस बार लाल हरी चूड़ियां नहीं, सिंदूर नहीं, गोबर नहीं, नीम भी नहीं.. मां प्रसन्न होने वाली है गले पे टंगे हुए मास्क से.. वो अब आपकी श्रृद्धा है के आप बाजार वाला ढोंगी एन 95 मास्क लगाते हैं या फिर घर पर चादर फाड़ के बना शुद्ध लाल मास्क... जैसी भक्ति होगी वैसी ...