सब्जियों का संघर्ष

खेत जो के घर है उनका वहां पर अपना बचपन बिता कर, जवानी की ओर बढ़ती हुई सब्ज़ियां जैसे ही किसान की नज़र में आती हैं मानो उनकी विदाई के दिन नज़दीक आते जाते हैं, वो जगह जहां उन्होंने अपनी आधी उम्र बिता दी दोस्त बनाए एक दिन अचानक उन्हें कहीं और भेज दिया जाता है, डरी सहमी सी बेचारी सब्ज़ी गाड़ी में चढ़ तो जाती है पर अपने आंगन कि महक और दोस्तों के साथ ना होने पर दुखी भी बहुत होती हैं.. एक सब्ज़ी के जीवन का ये सबसे भावुक क्षण होता है..!!
सारे दोस्त बिछड़ जाते हैं कुछ एक जो साथ होते हैं वो भी किसी कमरे में इस बात का इंतज़ार करते हैं के अब अगला तबादला जाने कहां हो..!! कहीं आलू अपने घर से दूर होने के दुख में पिपिला सा हो जाता है तो कहीं टमाटर को मां की इतनी याद आती है के वो दुख से पिचक जाता है.. गोभी,गिलकी,लौकी भी दुख में मुरझाई सी होने लगती हैं तभी उनके नए पिताजी आकर उन्हें शहर ले जाते हैं आगे का काम काज सिखाने के लिए, ये उन्हें उस मंडी के दर्शन करवाएंगे जहां जाने का सपना उनके किसान पिता ने पहले रोज़ से दिखाया था, मंडी आकर सब्ज़ियों के हाव- भाव ही बदल जाते हैं सबको साथ लेकर चलने की सीख कहीं गुम सी हो जाती है और आपस में एक स्पर्धा सी होने लगत है के कौन कितना बेहतर बिक के दिखाता है,
देसी बनाम विदेशी तो बहुत ही आम सी होड़ रहती होगी, मशरूम, ब्रॉकली, शिमला मिर्च, बीन्स की बराबरी करने की कोशिश शायद सारी देसी सब्ज़ियों को साथ ले आता हो पर जब अपनी बारी आती होगी तो सबकी यही कोशिश होती होगी के बुढ़ापा आने से पहले कहीं ठिकाने लगा ही जाएं ऐसा ना हो के इस मंडी में ही दम तोड़ना पड़े..!!
अब इस बात पर ज़रा भी आश्चर्य नहीं होना चहिए के इनमें भी जाती भेद होता होगा..सारी बात इस पर निर्भर करती है के इन्हे कौन सी जाती का व्यक्ति किस मौसम में सबसे ज़्यादा खरीदता है,
मंडी में सब्ज़ियों की आपस में बातें ऐसी होती होंगी के देख देख देख आ रहा है, आज तो तेरी "लाइफ सेट" होने वाली है..!!😂
बांकी सब्ज़ियों के क्या हाल होते होंगे..??
गिलकी : सबसे अकड़ में रहने वाली सब्ज़ी इसको अपनी सुंदरता की कोई फिक्र है ही नहीं तो भईया जिसको पसंद हो लो नहीं तो बार बार आकर हाथ ना लगाओ..चुप चाप निकल लो..!!
भटा : ये जनाब चमचमाते हुए किसी डालिए में ये चीखते हैं के अकेले बनाना हो तो लेके चलो कहीं गोभी के साथ कहीं मटर के साथ डाल देते हो मुझे नहीं जाना..!!
लौकी और कद्दु : ये दो बेचारे इस बात से परेशान हैं के इनके शरीर का दाह संस्कार एक बार में नहीं हो पता आधा आज आधा कल शामको बेचारे बड़े दुखी होते होंगे, खैर इस दुख के पीछे छुपी है कद्दु सेठ की नाक.. इनका अपना टशन है जब भी ठेले पे सवार होकर निकलते हैं सब के सब दुआ सलाम में लग जाते हैं.. और लौकी के अपने मरीज़ है... यहां मरीज़ सच में मरीज़ ही है जो सुबह सुबह नाक सिकोड़ते हुए इनका कतल करता है और पी जाता है, बांकि लौकी घर में सन्नाटा लाती है या मम्मी की डांट..!!
अब मौसमी सब्ज़ियों की बातें जान लेते हैं.. इनमें सबसे ऊपर नाम आता है भाजी का..
ये महोदया शरमाते हुए मंडी में आती होंगी ओर आलू मटर जैसे लोग इनपर लाइन मारते होंगे..!! 
एकदम चमचमाती हुई कड़क मेथी तो बवाल ही मचा देती होगी.. बाँकी लाल भाजी की अपनी अलग जनता है 
इन भाजियों का ट्रैंड कुछ महीने ही रहता है पर जबतक रहता है मंडी में रौनक बनी रहती है.. भाजियां इंतज़ार करती हैं के कब किसी के घर जाएं और अपने सबसे पुराने दोस्त कढ़ी से मिले और ऐसे मिलें के बस खाने वाले को मज़ा ही आ जाए..
मटर भी इस बात से परेशान है के उसको सब्ज़ी नहीं धनिया बना दिया है जहां मन पड़ता है वहां डाल देते हैं.. वो भी सोचता है के मालदार आदमी लेकर जाए ताकि उसकी क्रश पनीर से मुलाकात हो जाए.. और मरने से पहले वो उससे अपने दिल की बात कह सके..!!
इन सारी सब्ज़ियों में एक ऐसी भी सब्ज़ी है जो फल भी होती है और वो है केला..केले का सारा भविष्य इस बात पर अटका है के उसे किस उम्र में तोड़ा जाएगा.. जो बचपन में किसी को पसंद आ गया तब तो मेहेज़ सब्ज़ी बनकर रह जाएगा और हो लुके- छिपे दिन बीत गए तब तो लंबी बोली लगवाने का हुनर रखता है..!!
अब आते हैं हर मौसम के राजा आलू जी महाराज के पास तो लब्बो लुआब ये है के इन महाशय की तो आम भाषा में कहें तो "लाइफ सेट" होती है क्योंकि सबका टाइम आता है और जाता है इनका पूरे साल टाइम रहता है एक अलग दुकान में पैर पसारे पड़े पड़े मोटे होते रहते हैं और एक अलग ही चौड़ में कहते हैं अरे कहां जाएगा..आएगा तो यहीं ही ना.. मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता.. इनको मंडी का सबसे मिलनसार दोस्त माना जाता है..और इनकी क्रश मटर है उसके साथ मिलते ही ये बवाल मचाते रहते हैं..बैगन के साथ आग में तप कर शानदार भरते में तब्दील होना कोई इनसे सीखे.. मम्मियों के दिलों के राजा और बच्चों की सबसे पहली पसंद है श्री आलू जी महाराज इनको अगर किसी से दिक्कत है तो वो है भाजी क्युकी वो इनसे बहुत चिपकती है और ये उनसे दूर ही भागते रहते हैं..
अब एक अतरंगी सी सब्ज़ी होती है कुंदरु इनकी अपनी अलग कहानी है जहां ये थोक के भाव मिलती है वहां लोग इनके तरफ देखते तक नहीं और जहां मिलते नहीं वहां विदेशी सब्ज़ियों के अरमान कुचलते हुए ये रेस जीतते चले जाते हैं..!!
अब जब सबकी बातें हो रही है तो कठहल को केसे छोड़ दें.. जबसे ये महाशय मंडी में आते हैं लोगों के घरों में काम बढ़ जाता है.. बेचारा बैगन एक कोना पकड़ लेता है और आलू जी महाराज भी थोड़ी अकड़ काम कर देते हैं ये मंडी में ऐसे आते हैं मानो एशिया में आफ्रीकी..!! ना किसी से बातचीत ना दोस्ती यारी.. थोड़ी बहुत प्याज़ लहसुन से घुलते मिलते हैं बस..!!
अब सोचने की बात ये है के क्या सब्ज़ियों को भी कोई परेशान करता होगा..?? क्या इनकी भी अदालत होती होगी..?? क्या इनके भी आंदोलन होते होंगे.. बहरहाल मै ये ज़िम्मा आपको सौंपती हूं आप बताएं के क्या ऐसा होता होगा..!! 
तब तक पढ़ते रहिए और मस्त रहिए
जय जय..!!

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