सावरकर वीर, नेहरू धीर और अम्बेडकर गंभीर, क्या सच में ?

आजकल एक चर्चा बड़ी आम है, या यूं कहूं के इतिहास को कुरेदने की भरपूर मशक्कत चलती रहती है, और इस दौड़ में कोई पीछे नहीं है ना नेता और पत्रकारों का क्या ही कहें..!
बहरहाल, कुछ साल पीछे जाएं तो हम पाएंगे के लोगों को एक अलग ही तरीके से अपनी चीजें मनवाने का सामान मिला था, इंटरनेट.. और 2014 के चुनाव में खासी भूमिका भी निभाई इस इंटरनेट ने.. क्या तबसे स्वतंत्रता सेनानियों की छवि धूमिल करने का चलन शुरू हुआ..? 
चुनाव पहले भी होते थे, प्रतिद्वंदियों की जी भर के बुराइयां भी होती थीं पर इस तरह की नफरत नहीं होती थी जो अब के नेताओं के बीच है, मानो एक दूसरे का खून करना ही बांकी हो..!!
इस डिजिटल समाज में जहां हर किसी को हर किसी से दिक्कत है, ऐसे में किसी भी सोच या विचार का लोगों में आम होना बहुत आसान बात है, क्या अब के नेता इसी बात का फायदा उठा रहे हैं..? 
अपने बूते पर चुनाव ना लड़ कर इतिहास को बीच में घसीटना कहां तक उचित है, कोई भी व्यक्ति अपने वर्तमान में अच्छा ही काम करना चाहेगा, ये नहीं चाहेगा के देश के साथ बुरा किया जाए.. या मैं जिस तरह से कहना चाहती हूं, कहूं तो आप नेता अपने वर्तमान में होते हैं, आपकी आने वाली पीढ़ी या तो उससे सबक लेती है.. या कमियां निकालती है..!!
90 के दशक तक नेता इतिहास से सबक ले रहे थे, इसलिए सकारात्मक राजनीति होती रही और एक दौर आया जब एक तरह से कांग्रेस वापस से देश की करता धार्ता बन गई, और दूसरी तरफ गुजरात में नरेंद्र मोदी अपना दबदबा कायम किए हुए थे, और उनके विकास के मॉडल को हर जगह सराहा गया, 14 का चुनाव तो धांधली और भ्रष्टाचार को कोसने और उसको गाने में बीत गया, फिर आया मोदी जी का डिजिटल इंडिया का नारा( अब का आईटी सैल 😅).. ये तब लोगों को जितना जोड़ रहा था, अब उतना ही तोड़ रहा है..!!
किस तरह से असल बातों को छिपाया जाता है, कितनी आसानी से एक दस बरस का बच्चा भी नेहरू या उनकी मंशा पर सवाल खड़ा कर देता है,
तो कुल मिला कर मैं ये कहना चाहती हूं के ये जो सारा का सारा ज्ञान है जो आजकल हर किसी के पास है, आता कहां से है, और अचंभा ये है कि सबके ज्ञान में इतिहास अलग अलग है, 
अब ये अपने अपने इतिहास की जड़ें बड़ी गहरी हैं, राजाओं ने भी यही किया (अलाउद्दीन को तो आपने देखा ही है पद्मावत में) जो उन्हें लोगों ताक पहुंचाना था वही बचाया बाकी  सब गायब कर दिया, आजादी के बाद कांग्रेस ने भी यही किया.. इसलिए आप देखेंगे के किस तरह से बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के या तो नाम गायब हैं और अगर कहीं हैं भी तो भी महज आतंकवादी कहने के लिए,
खैर अब गूगल बाबा के आगे  कोई क्या ही इतिहास छिपाएगा पर हां अपनी तरह से परोसेगा ज़रूर,
इसलिए आप पाएंगे के हर नाकामी का ठीकरा कांग्रेस के सिर मढ़ते मढ़ते भाजपा वाले नेहरू तक पहुंच गए और सिर्फ वही नहीं रुके कई बार हदें पार हुई हैं, और ये निंदनीय है..!!
अब उसी तर्जनी पर कांग्रेस काम कर रही है, कांग्रेस के सेवादल के शिविर में विनायक दामोदर सावरकर के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी और कही गई, फिर वो उनके और नाथूराम गोडसे के बीच समलैगिंक संबंध की बातें हों या उनकी माफी याचिका पर सवाल हो..!!
सावरकर जो की अब जीवित नहीं है इस बात को झुठलाने के लिए आ नहीं सकते तो उनके बचाव में दूसरी पार्टियां आ जाएंगी, इस बात से एक और बात सामने आती है और वो ये कि सभी पार्टियों ने अपने अपने महापुरुष चुन लिए हैं, इसलिए आप देखेंगे के गांधी - नेहरू देश से ज़्यादा कांग्रेस के हैं, सावरकर अपने हिंदुत्व को लिए भाजपा के पास हैं , और अब सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इधर ही हैं, और बाकी कम्युनिस्टों को इस देश के नेता रास नहीं आते ,ना रास आते हैं उनके विचार तो ये ज़्यादा पढ़े लिखे लोग वैश्विक नेता (लेनिन, मार्क्स) को अपना मानते हैं..!!
तो अब आप समझ ही गए होंगे के क्यों मैं ये सब कह रही हूं, इतिहास अब महज इतिहास नहीं प्रोपोगेंडा बन चुका है, जिस तरह से उसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया जा रहा है वो बहुत ही खतरनाक है, किसी की कही हुई बातों के अंश, आधे अधूरे वीडियो को इस तरह से मिलाया जा रहा है के आप उसको मानने पर विवश हो जाएंगे, और जो इंटरनेट ने बुद्धि भ्रष्ट की है , तो उसकी सच्चाई जानने की आप कोशिश भी नहीं करेंगे और अपने दस और मित्रों को वो गलत जानकारी भेज देंगे,
हम आप या वो दस बरस का बच्चा इस देश में पैदा तब हुए जब आजादी मिल चुकी थी या आप उसके पहले के भी हो सकते हैं, और जिस तरह की आजादी हमें मिली है हर किसी को नहीं मिलती, ना आप और हम उस वक्त वहां मौजूद थे ये देखने के लिए के सावरकर ने क्यों माफी मांगी या नेहरू ने कश्मीर का समझौता कैसे किया, इसलिए हमें ये हक भी नहीं बनता के उन पर सवाल उठाए, उस वक्त उन्हें जो सही लगा उन्होंने किया जैसे अभी आप कर रहे हैं, 
पर सवाल चाहे नेहरू पर हो या सावरकर पर गलत दोनों ही सूरतों में है,
इतिहास कभी भी छेड़खानी का पात्र नहीं बनना चाहिए, ना ही किसी की निजी ज़िन्दगी और खास तौर पर तब जबकि वो जीवित ही नहीं है,
पहले मजहब बांटे, फिर मुल्क, फिर भाषा, फिर जात - पात आ गई और अब महापुरुषों को तक नहीं छोड़ा,
संघ समर्थक चाहे कुछ भी हो जाए नेहरू को अच्छा नहीं कहेंगे, और कांग्रेस जो ज़्यादातर कुछ नहीं ही कहती है वो भला कैसे तारीफ करेगी सावरकर की, फिर भले ही ईमान बेच के महाराष्ट्र में सरकार बना ले..!!
अम्बेडकर भी या तो भगवान की तरह पूजे जा रहे हैं या हैवान की तरह कोसे जा रहे, एक और दिक्कत है अपने समाज में और वो ये के अपनी राजनीति चमकाने के लिए कोई भी किसी को भी भगवान बना देगा, और जिस तरह से आरक्षण का बोल बाला है चुनाव में, आंबेडकर कहां बचते सो बस बन गए हैं भगवान, कहीं जयंती मनाई जा रही है, कहीं नमस्कार की जगह जय भीम ने ले ली है और स्कोडा से उतर कर एक नेता अपनी गरीबी और आरक्षण की जरुरत पर भाषण करता है, और जरूरतमंद बैठा का बैठा रहता है, मुफ्तखोरी तो जैसे विरासत में मिलती हो,
आरक्षण वालों की अगली मांग होगी इसरो में आरक्षण, सेना में आरक्षण, और खेलों में भी तो बराबर का दर्जा मिलना चाहिए, ऐसे कैसे एक तबका पिच्छड़ा रहे,
अलगा काम जो मुझे लगता है होगा वो है संविधान का मंदिर बनना और उसके बाहर सारे नेताओं के प्रवचन होना,🙂
चीज़ों का बदलना जरूरी है, और नए तरीकों का आना भी पर आपका अंधा होना कतई जायज़ नहीं, एक तबका चुप है क्यूंकि कुछ कह नहीं सकता या कहने नहीं दिया जाता, एक ने आंखो में पट्टी बांध ली है और जो रह गए हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता..!!
पर ये जो भी कुछ हो रहा है गलत है, बहुत गलत है.. आप गलतियां या कमियां इतिहास पर नहीं थोप सकते ना ही उस से जुड़े लोगों की कमियां निकाल सकते हैं, क्यूंकि ये करके आपको क्या मिलेगा, हमें अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, कोई एक व्यक्ति या एक विचार कभी भी सही नहीं हो सकता.. और जो हो गया तो हम अगला चीन होंगे जहां हर दूसरे विचार को पर्दे के पीछे रखा जाता है या कुचल दिया जाता है, 
इसलिए लड़ाई विचारों से होनी चाहिए, किसी ने सही कहा है की आपके और मेरे विचार अलग हो सकते हैं पर इसलिए आप मेरे दुश्मन हो जाएं ये कतई नहीं हो सकता, तो जो तरीके आज के बड़े राजनैतिक दल अपना रहे हैं, वो नहीं होना चाहिए, फिर वो जनेऊ धारी ब्राम्हणवाद हो या मौलानाओं से मुलाकात, नेहरू की कमियां हो या सावरकर ही खामियां, ऐसा नहीं होना चाहिए...
अम्बेडकर और आरक्षण पर फैसलों का इंतज़ार, और संविधान के मंदिर बनवाने की मांग भी उठ ही आएगी कहीं से, तब तक के लिए..
जय - जय

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