सरहदें हवाओं की

हर ज़बान की चर्चा का विषय, सरहद.. और शायद ये शब्द सुनते ही दिमाग़ में शोर शराबा, मार काट आ जाती होगी शायद हमने अब तक इसके यही मायने निकाले हैं..!!
सरहदों ने कहीं काम बहुत आसान किया है, तो कहीं बहुत मुश्किल.. और जब मै मुश्किल कहती हूं तो हम हिन्दुस्तानियों से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है.. पर आज मैं जिस सरहद की बात करने वाली हूं या जिस जगह पर सरहद की बात करने वाली हूं वो अपने आप में ही एक अनोखा वाकया है, और इस बात पर ज़ोर देने के लिए मेरे पास तर्क तो नहीं पर एक गाना ज़रूर है जो मैं आपको आगे बताऊंगी, 
हर साल ना जाने कितने ही पक्षी अपनी मिट्टी छोड़ कर या यूं कहूं के अपना देश छोड़ कर या अपनी सीमाओं, सरहदों को पार करके एक देश से दूसरे देश विचरण करते हैं, कितना अजीब है ना ये सोचना के उनके लिए कितना आसान होता है कहीं भी कभी भी चले जाना, पर यहां कभी भी को थोड़ा पीछे करना होगा क्यूंकि शायद ये पंछी भी पूरे साल अपनी छुट्टियों के महीने का इंतज़ार करते होंगे और अपना सामान, परिवार लिए कहीं और बसने, ढलने निकल पड़ते होंगे.. ना किसी पासपोर्ट की दिक्कत ना वीज़ा का चक्कर..!! चलिए कहीं तो बिना सिफारिश काम होता है,
खैर आगे बात करें तो, सोचना ये भी होगा के क्या जब ये एक देश से दूसरे देश जाते हैं तो वहां के लोग इनका स्वागत करते हैं या अपनी सरकारों से ये मांग उठाते के या इन्हे वापस भेज दीजिए या डिटेंशन कैंप में रख दीजिए..!!
बहरहाल, क्या जैसे हम कहीं भी जाते हैं तो वहां के बारे में टिप्पणी करना अपना परम कर्तव्य मानते हैं ये लोग भी अपनी भाषा में ऐसा करते होंगे..? और जो करते हैं तो इनका भी शाहीन बाग आना जाना होगा क्या, ये एनआरसी और सीएए पर क्या बोलेंगे  ..?
वैसे जहां तक हम मनुष्यों का सवाल है हमें इनकी आबादी से तो समस्या नहीं ही है, तभी तो हमें ये खूब लुभाती हैं और तस्वीरों में जगह पाती हैं, 
एक सवाल और उठ रहा है और वो ये के मनुष्यों के निजी स्वार्थ और आकांक्षाओं के चलते ज़मीन के टुकड़े तो कर लिए गए, पर क्या किसी ने हवा के रहवासियों को ये खबर दी..? 
क्या उनके यहां भी ऐसे बटवारों की स्कीम चलती होगी..?
क्या उन्होंने भी अपने अपने देश बना रखे हैं, उम्मीद तो ये है के इस सवाल का जवाब ना ही हो..!!
बांकि जिस गाने का ज़िक्र मैंने लेख के शुरुआती अंश में किया था वो ये है - "पंछी ,नदियां, पवन के झोंके.. कोई सरहद ना इन्हे रोके, सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान होके..?"
शायद सच ही है, इंसान होके क्या ही पाया बस एक अंधाधुन होड़ में लग गए हैं, छोटे थे तो बड़े होने की होड़, बड़े हो गए तो काम करने की, काम मिल गया तो पैसे बनाने की, पैसे बन गए तो नेतागिरी चमकाने की, और नेतागिरी चमक गई तो नया देश बनाने की..!!
हमसे अच्छे ये मूक जानवर हैं, सदियों से एक साथ हैं और सदियों तक रहेंगे ना किसी से कोई होड़ ना किसी से आगे निकलने की ललक..!!
और जो हवा में भी सरहदें हैं..? तो क्या हमारी सरकार को इनकी सरकार से कोई इजाज़त नहीं लेनी होती..? और अगर लेनी होती है तो क्या पैसे देने होते हैं, और अगर पैसे देने होते हैं तो कल ही प्रधानमंत्री देश को संबोधित कर हमें बताएं, अरे भाई हमारा पैसा है, मालूम भी तो होना चाहिए कहां लगाया जा रहा है..?
खैर, सालों से ठंड मानने ये पंछी , विदेशों से हमारे यहां आते रहे हैं और आते रहेंगे.. तबतक के लिए इनकी सुंदरता देखते हैं, पर अब आप अगली बार एक खूबसूरत चिड़िया देखें तो दिमाग़ में ये ज़रूर सोचिएगा ,क्या यहां आने से पहले उसने भी कागज दिखाए होंगे..? 
या क्या इनके यहां भी कोई सरहद होती होगी..!!

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