ज़रूरत है..!

एक थप्पड़ और उससे पैदा हुई झुंझलाहट के मायने क्या होते हैं शायद मैंने इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं ना महसूस करने की कोशिश ही की, ऐसा नहीं था के अपने आस पास इस हथियार का इस्तेमाल होते नहीं देखा था, फिर भी यही लगता था..की किसी भी शादी में ये एक बहुत ही मामूली सी बात है, जो कि होता रहता है।
 हमारे मां बाप इस बात को समझते हैं, या हमें बोझ नहीं मानते तो शायद हमें ये सब नहीं सहना पड़ेगा पर हां.. इतना ज़रूर है के शादी के बाद आपकी इज्ज़त आपके पती की इज्ज़त से कुछ कम ज़रूर होगी इसलिए नहीं के वो आपसे ज़्यादा पैसे कमाता है, बस इसलिए के वो पति है, वो कुछ भी कह या कर सकता है,
थप्पड़ जैसी फिल्में हमें इस बात का एहसास करवाती हैं कि ये एक औरत का ही बस काम नहीं है जिसे रिश्ता संभालना आना चाहिए.. अगला व्यक्ति जिसे सारी चीजें हथेली पर मिल रही हैं उसके जिम्मे भी कुछ काम है.. ये फिल्म आपको अंदर से झंझोड़ देगी खास तौर पर तब जब आपने कभी ना कभी किसी औरत के साथ बदतमीजी की होगी, भले ही वो एक गुस्से भरी धुक्कार ही क्यूं ना हो.. आपको एहसास दिलाएगी ये फिल्म के आप कितने गलत हैं, और अगला कितना सहनशील जो चीज़ों को इग्नोर करके आपके साथ खड़ा हुआ है.. ज़रूरी नहीं के हर बार गलत करने वाला आपका पति ही हो, फिल्म के आखिर के अंश में जब अमु अपनी सास से कहती है " मेरी अहमियत इस घर में तभी तक थी जबतक में, उसकी बीवी थी, मैंने डाइवोर्स मांग लिया तो कोई मुझसे ये कहने नहीं आया के तुम गलत नहीं हो, ना किसी को मेरी याद अाई " ये लाइन आपको रुला देगी, किस तरह एक लड़की अपने परिवार को छोड़ कर किसी का घर संभालती है अपना समझ कर, उसके बाद भी जब वो इस रिश्ते के दोराहे पर खड़ी होती है तो उसका साथ देने उनमें से कोई भी नहीं आता जिनके लिए उसने जाने कितनी ही चीज़े की हों,
ये फिल्म एक तलाक के आलावा भी बहुत कुछ है, केसे आपको अपने रिश्ते को रिबूट करना है, ये आपको सिर्फ अपनी बीवी, गर्लफ्रेंड, या मां की इज्ज़त करना नहीं सिखाती बल्कि हर उस औरत की इज्जत करना सिखाती है जिसकी तरक्की देख आप कहते हैं, सिर्फ नौकरी नहीं कुछ और है इसकी तरक्की की वजह.. ये आपको हर वक्त एहसाह करवाएगी की आप एक बाई या शोपीस नहीं लाए हैं घर, आपको एक इंसान बनाती है ये फिल्म।
ना केवल लड़कों को, आदमियों को ये फिल्म देखनी चाहिए बल्कि हर उस मां को देखनी चाहिए जो अपनी बेटी को एडजस्ट करना सिखाती है, जो पहले थप्पड़ को ये कह के टाल देती है के ये सब होता रहता है, जो उसे दुनिया भर के कायदे सिखाती है पर खुद की इज्जत करना नहीं सीखा पाती,
और हां ये फिल्म उन पापाओं के लिए एक ट्रिब्यूट है जो अपनी बेटी के साथ उसके हर फैसले में खड़े रहते हैं, जो उन्हें थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से देने के लायक बनते हैं, ना कि एक अबला, बेचारी.. बिना ये परवाह किए की समाज क्या कहेगा, यहां तक की लड़की की मां क्या कहेगी..!
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ये फिल्म औरतों के लिए नहीं, आदमियों के लिए बनाई गई है, ज़रूर देखें🙂

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