राम और संघ

हम हमेशा अल्पसंख्यकों के हितों और उनकी परेशानियों पर विचार करते हैं, हमारी धर्मनिरपेक्षता हमे हर बार ये करने पर मजबुर करती है, और शायद इसलिए ही भारत भारत है, 

पर ऐसी धर्मनिरपेक्षता भी भला किस काम की जहां, बहुसंख्यक ही अपना अस्तित्व टटोलते हों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना ही इस उद्देश्य से हुई थी, की देश में विदेशी ताकतों का दबदबा इसलिए है क्युकी इस देश के हिन्दू एकजुट नहीं है.. सावरकर और हेडगेवार की मुलाकात के बाद संघ की स्थापना इस बात की पुष्टि करती है, के इसका उद्देश्य हिन्दू एकजूटता ही था, और शायद आज भी है।
संघ के साथ जो बात हमेशा से जुड़ी रही वो है विवाद, जब समाज के एक तबके या विचारधारा और उससे जुड़े लोगों की तकलीफों के बारे में इतना खुलकर विरोध या समर्थन किया जाए तो ये वाजिब भी है, खासतौर पर भारत जैसे देश में, पर जब यही काम अल्पसंखयक करें तो वो उनका अधिकार हो जाता है..!! 
संघ को अपने इस रवैए के कारण समय समय पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है, फिर वो चाहे गांधी जी की हत्या हो, या विभाजन के हिन्दू मुस्लिम दंगे, इमरजेंसी और फिर बाबरी मस्जिद ढांचा,
सावरकर - गोलवलकर की विचारधारा वाला संघ, हमेशा अपने तीखे स्वरों के लिए चर्चा में रहा है, शायद इस विवादित छवि के कारण ही राजनीति में होकर भी संघ राजनीति में नहीं दिखता,
राम मंदिर और धारा 370 का संघ के लिए क्या महत्व है ये किसी से छिपा नहीं है, भाजपा के इस शाशनकाल में इन दोनों कामों को पूर्ण करके, वो भी शांतिपूर्ण तरीके से, संघ और भाजपा की कट्टरपंथ छवि का कायाकल्प कर दिया है,
राम धर्म और जाती के बंधन से कहीं दूर नजर आते हैं, पर बरसों से चली आ रही राजनीति इस बात की पुष्टि नहीं करती, वो तो बस इतना बताती है के इस धरती पर सबसे ज़्यादा राजनीतिक चर्चा बटोरने वाले प्रभु श्री राम ही हैं..!
राम ना केवल आराध्य है, ना केवल आस्था है बल्कि एक भाव हैं जो हर एक सनातन धर्म को मानने वाले के मन में बसा हुआ है.. इस भाव को आवाज़ देने वाले संघ को आज अलग नजर से देखा जा रहा है,
राम मंदिर निर्माण ने, हमेशा बैकफुट पर रहने वाले संघ को आज फ्रंट फुट पर लाकर खड़ा कर दिया, सनातन धर्म की एक जुटता ने आज नया कीर्तिमान स्थापित कर लिया, विवादों से घिरे संघ को एक नए पटल पर स्थापित कर दिया, आज से पहले संघ का पार्टी के किसी भी कार्य में इतने प्रत्यक्ष रूप से साथ आना शायद कम ही देखा गया हो,  पर अब ये मलाल भी ख़तम सा हो गया..!
संघ और उसके संकल्प ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने से जुड़े लोगों का उत्साह बरकार रखा, विवादों और प्रतिबंधों के बावजूद अपनी तीखी बोली के लिए जाना जाने वाला संघ अपने काम पर अडिग रहा, राम ने संघ को वो दिया है जिसके लिए शायद वो अबतक मेहनत कर रहा था, मानों वर्षों की साधना और त्याग का फल मिल गया हो,

जब एक विचारधारा से जुड़े लोग अडिग होकर, निडरता के साथ अपने संकल्प के लिए सर्वस्व अर्पित करते है, तब ही ऐसा कुछ होता है.. और संघ और उससे जुड़े लोगों ने तो अपनी जान तक की परवाह नहीं की, तथाकथित सेक्युलर समाज में दबी हुई हिन्दू आवाज़ को उठाने का साहस करना, और उसके हितों के लिए सदैव कार्य करते रहना, कठिन है.. और संघ से बेहतर इसे कोई नहीं कर सकता , क्यूंकि संघ से ज़्यादा अनुशासित और सशक्त संगठन कम ही नजर आते है, एक ऐसा संगठन जिसने 62 के चीन युद्ध में अपनी ताकत का एहसास करवाया हो, हो हर विपदा के वक्त लोगों के बीच नजर आता हो, भाषण बाज़ी से कहीं अधिक अपने कर्तव्यों को मान दे...!
संघ को आज उसके परिश्रम का फल मिला है, राम ने संघ को ना सिर्फ विजय और कीर्ति प्रदान की है बल्कि, अलग पहचान भी दिलाई है, इस बार संघ विवादों से नहीं अपने काम से चर्चा में है..!!
इस मौके पर एक व्यक्ति और उनके परिश्रम को भी याद किया जाना आवश्यक है,
अगर बालासाहेब ठाकरे जीवित होते तो, सर संग चालक मोहन भागवत के बगल में बैठे नजर आते..!!

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