करीब होती दुनिया में अकेले होते लोग

याद है बचपन का वो डाकिया, और डाकिए से आती दादाजी के चेहरे की मुस्कान.. क्यूंकि दूर गांव से किसी की चिट्ठी आया करती थी तब उस छुट्टी को दो बार चार बार पढ़ कर उसके भाव महसूस किए जाते थे, हमें हमारी बारी का इंतजार होता के अब सबने पढ़ ली अब हमारा नंबर आएगा समझ आए या नहीं पढ़कर खुशी बहुत होती थी, अब ऐसी कोई भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती सबकी चिट्ठियां अपने अपने फोन पर आ जाती हैं उन्हें पढ़ो या ना पढ़ो अगला व्यक्ति खुश ही होता है के एक काम ख़तम हुआ,
ये वाकया मैं इसलिए सुना रही हूं क्युकी वो चिट्ठी मेहेज हार्ड कॉपी बन कर रह गई है.. !! 
चिट्ठी से याद आते हैं "ग्रीटिंग कार्ड", रंग बिरंगे खूबसूरत.. भावनाओं से लबरेज़..नया साल हो, सालगिरह हो या किसी अपने का जन्मदिन ग्रीटिंग कार्ड के बिना सब अधूरा होता था और अधूरे होते थे वो ग्रीटिंग कार्ड बिना शायरी के.. उन शायारियों के भी अपने किस्से हैं.. मेरे है आपके भी ज़रूर होंगे, 
खैर अब शुभकामनाएं एक काम की तरह हो गई हैं, " नव वर्ष मंगमय हो", ये वाक्य ' साथी हांथ बढ़ाना ' की तरह नजर आता है ना जाने लोगों को इसे पढ़ने की फुर्सत मिली भी या नहीं.. या बस इसका उसको और उसका इसको चिपकाते गए..!!
जब जब ऐसे पुराने से खयाल दिमाग में आते हैं मै खुद को ग़लत जेनरेशन में पाती हूं या हर वो व्यक्ति जिसे चिट्ठियां पसंद हों, कार्ड रखना पसंद हो, पसंद हो पुरानी डायरी की खुशबू ऐसा ही महसूस करता होगा..!!
बहरहाल, दुनिया को करीब लाने के यंत्र ने कमरों में दूरियां बना दी.. तो त्योहार तो बोहोत मामूली सी चीज़ है।
संबंध अब औपचारिकताओं से अधिक कुछ नहीं रह गए हैं, चिट्ठी और ग्रीटिंग कार्ड वाली मुस्कान के लिए अब समय नहीं है हम व्यस्त हैं, दूरियां अहमियत का एहसास दिलाती थी अब हर वक्त मिलते अपडेट भी साथ महसूस नहीं करवा पाते..!!
 तारिक़ बदलने से पहले औपचारिक शुभकानाएं उन चिट्ठियों की जगह कभी नहीं ले सकती जिनमें राखियां हफ्तों बाद घर पहुंचती थी, वो कार्ड जिनमें बचकानी शायरियां लिखी हैं, वो तस्वीरें जो इत्मीनान में निकलती हैं और कुछ ना कह कर भी आंखे नम कर देती हैं ।
यहां तक पढ़ा है तो सेहमत ही होंगे,
एक और बात,
सुबह से संदेशों का तांता लगा है, पर एक भी पढ़ने का मन नहीं होता ऐसी औपचारिकताओं से दूरी भली।

जाते जाते एक काम मैं भी निपटा दूं
' नव वर्ष मंगलमय हो '

जय जय


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